भारत ने चीन की सीमा से लगे पर्वतीय नॉर्थईस्टर्न रीजन में अपनी अब तक की सबसे बड़ी हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी है क्योंकि देश बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए नवीकरणीय उत्पादन का निर्माण करना चाहता है। सरकार द्वारा संचालित हाइड्रोपावर उत्पादक एनएचपीसी लिमिटेड ने सोमवार को कहा कि सरकार ने अरुणाचल प्रदेश में 2,880 मेगावाट की दिबांग परियोजना के लिए 319 अरब रुपये (3.9 अरब डॉलर) के अनुमानित निवेश को मंजूरी दी है। इस परियोजना के निर्माण में नौ साल लगने का अनुमान है।
भारत ने हाइड्रोपावर को रिन्यूएबल एनर्जी के रूप में वर्गीकृत किया है और रुक-रुक कर सौर और विंड आपूर्ति के कारण होने वाले उतार-चढ़ाव को प्रबंधित करने में मदद के लिए कोयले से दूर अपने संक्रमण में इसे महत्वपूर्ण मानता है।
हालांकि, बड़े पैमाने पर एनिवरोंमेन्टल डैमेज और बांधों के निर्माण के लिए कम्युनिटीज के विस्थापन ने उन योजनाओं को बाधित किया है, लोकल प्रोटेस्ट्स के कारण परियोजनाओं में देरी हुई है और निर्माण लागत में वृद्धि हुई है।
बांधों, नदियों और लोगों पर नॉन प्रॉफिट दक्षिण एशिया नेटवर्क के कोऑर्डिनेटर, हिमांशु ठक्कर के अनुसार, दिबांग, जो 5,000 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि पर बनाया जाएगा, समान जोखिमों का सामना करता है। उन्होंने कहा कि स्थानीय विरोध और जो लॉजिस्टिकल डिफीकल्टीज के कारण संभावित देरी के हिसाब से कंपनी की नौ साल की समयावधि निर्धारित की गयी है।
ठक्कर ने कहा, “लागत बहुत अधिक होगी और लाभ बहुत कम होगा।” “ऐसी परियोजनाओं के लिए वास्तव में कोई व्यवहार्यता नहीं है।”
स्वीकृत निवेश में बाढ़ नियंत्रण और निर्माण स्थल को जोड़ने वाली सड़कों और पुलों जैसे बुनियादी ढांचे को सक्षम करने के लिए सरकारी सहायता के 67.2 अरब रुपये शामिल हैं।
एनएचपीसी ने टिप्पणी मांगने वाले ईमेल का जवाब नहीं दिया।
हिमालयी क्षेत्र में कई अन्य परियोजनाएं अपने मूल समय से वर्षों पीछे चल रही हैं, जिनमें से कुछ पर पृथ्वी को ढीला करने और स्थानीय निकासी को मजबूर करने का आरोप लगाया गया है।
ठक्कर ने कहा, “हिमालय क्षेत्र एक ऐसा डिजास्टर प्रोन रीजन है और ऐसी हर परियोजना संभावित आपदाओं के लिए फाॅर्स मल्टीप्लायर के रूप में कार्य करने वाली है।”